Thursday, April 24, 2008

हुस्न ओ इश्क......

इल्म है उसे हिबाह-ऐ-जेय्ब की उनपे याज्दानों से,

आगाही खुद्सर-ऐ-मख्बूत-ऐ-जुर-ऐ-बिस्मिल भी होता।

खुदाया तब भी परस्तिश ही करते, हम उनकी,

की मेरा जानि’ब जो कहीं मेरा कातिल भी कहीं होता

(हिबाह=gift; जेय्ब=beauty; याज्दान=God; आगाही=knowledge; खुदसर=stubborn; मख्बूत=mad; जुर= dare; बिस्मिल=lover; जानि'ब=lover;)


उनको लगता है कि काफिर शेर केहता है,

खूं-ऐ-जिगर बयां तरह और होता।

फ़िदा’ई की ये तो फितरत है,

जो तू नही, तो कोई और होता।


(फ़िदा’ई=lover)


गुरूर न कर तू अपने दिल फरेब होने का,

जो न होता आग तो बे नूर होता।


(दिल फरेब= beautiful; आग=love) ……………………….Atul

2 comments:

डॉ .अनुराग said...

lajavab,bemisaal aor khoobsurat ...hamesha ki tarah...

Atul Pangasa said...

Bas aap jaise dooston ki dua hai.... :)