Thursday, April 24, 2008

हक-ए-दर्द .....

मेरी यादों पे तो मेरा हक रहेने दो।

कुछ ग़म हैं संभाले मैने दिल के खज़ाने में,

कुछ आंसुओं को बाँध रखा है आंखों के तहखाने में,

दर्द ही बचा है कहने को अपना,

मुझे अपने ये दर्द तो सहने दो,

मेरी यादों पे तो मेरा हक रहेने दो।

…………………Atul

2 comments:

pallavi trivedi said...

kya baat hai...bahut hi achcha. khoobsural ehsaas.

Atul Pangasa said...

shukriya........kuch aur kalaam post kar raha hoon aaj.