कहते हैं अकेला खुश्क फर्मानी है,
हम कहें खू-ऐ-दुनिया बे_ईमानी है.
और जो राज़-ऐ-जहाँ कहीं खोला जाए,
हर शक्स यहाँ पानी पानी है.
रहता हूँ खू-ऐ-जहाँ से दूर,
शब-ऐ-हिज्र-ऐ-आलम रूमानी है.
और कोई आए भी न अब करीब,
हमें क्या बन्दूं से आणि जानी है.
तू नही, और जीने की जुस्तजू नही,
मक्रूह सी जिंदगानी है.
और करें न किसीको हम_जलीस,
तनहा मरने में यौन आसानी है.
………………………….अतुल
(मक्रूह= cursed; हम जलीस = close friend)
2 comments:
kya baat hai...bahut hi achcha. khoobsural ehsaas.
shukriya........kuch aur kalaam post kar raha hoon aaj.
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