Thursday, April 24, 2008

सजदा ........

हमसे पहले भी शायरी के कई पीर होते थे,
सुना है, किसी ज़माने में ग़ालिब-ओ-मीर होते थे.
हम तो शेरों की इब्तदा भी कर न पाये मुक्कमल,
सुना है के वो शायरी की तकदीर होते थे.

1 comment:

pallavi trivedi said...

welcome to blog world...aapki baaki ghazlon ka intzaar kar rahe hain..