हमसे पहले भी शायरी के कई पीर होते थे, सुना है, किसी ज़माने में ग़ालिब-ओ-मीर होते थे. हम तो शेरों की इब्तदा भी कर न पाये मुक्कमल, सुना है के वो शायरी की तकदीर होते थे.
कहते हैं अकेला खुश्क फर्मानी है,
हम कहें खू-ऐ-दुनिया बे_ईमानी है.
और जो राज़-ऐ-जहाँ कहीं खोला जाए,
हर शक्स यहाँ पानी पानी है.
रहता हूँ खू-ऐ-जहाँ से दूर,
शब-ऐ-हिज्र-ऐ-आलम रूमानी है.
और कोई आए भी न अब करीब,
हमें क्या बन्दूं से आणि जानी है.
तू नही, और जीने की जुस्तजू नही,
मक्रूह सी जिंदगानी है.
और करें न किसीको हम_जलीस,
तनहा मरने में यौन आसानी है.
………………………….अतुल
(मक्रूह= cursed; हम जलीस = close friend)
1 comment:
welcome to blog world...aapki baaki ghazlon ka intzaar kar rahe hain..
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