रूह-ऐ-गालिब का असर है, की मैं ख़ुद नही लिखता,
कोई बचाए की मुझे अभी वक़्त है, उनतक जाने में।
और भी हैं तुझ पे फ़िदा होने वाले, अकेले,
मुन्किर-ऐ-वफ़ा ही मिलते हैं तुझको ज़माने में!
अब आ भी जा की शब-ऐ-इंतज़ार दर’किनार हो,
उम्र-ऐ-रफ्ता गुज़र न जाए तेरी, हमें आजमाने में।
………………Atul
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
4 years ago
5 comments:
अब आ भी जा की शब-ऐ-इंतज़ार दर’किनार हो,
उम्र-ऐ-रफ्ता गुज़र न जाए तेरी, हमें आजमाने में।
kya baat hai...wah.ye sher kuch jyada pasand aaya.
What has happened ,You are not the same atul i used to know .This stuff i am telling you has reminded the ghalib ,mir etc .
रूह-ऐ-गालिब का असर है, की मैं ख़ुद नही लिखता,
कोई बचाए की मुझे अभी वक़्त है, उनतक जाने में।
और भी हैं तुझ पे फ़िदा होने वाले, अकेले,
मुन्किर-ऐ-वफ़ा ही मिलते हैं तुझको ज़माने में!
बहुत खूब.....पहला शेर खास तौर से दिल ले गया .....हिन्दी में देखकर जी खुश हुआ
और भी हैं तुझ पे फ़िदा होने वाले, अकेले,
मुन्किर-ऐ-वफ़ा ही मिलते हैं तुझको ज़माने में!
kya gazab likha hai
fantastic....
Post a Comment