Monday, April 28, 2008
चाह-ए-दीदार-ए-यार
बिस्मिल हो तेरे आबो दानाह में कोई और,
और तेरी जेय्ब-ऐ-यास्दां सी जिंदगानी हो।
सितारे हमें इजाज़त नही देते हिबाह होने की,
वरना फ़िदा’इ-ऐ-जुर खड़ा है अपना सर लिए।
(बिस्मिल=lover; आबो दानाह = life; ज़य्ब-ऐ-यास्दां = Godly beauty; ज़य्ब=beauty; यास्दां= God; हिबाह=gift; फ़िदा’इ = lover; जुर = dare)
देखिये या अद्ल-ऐ-यास्दां क्या फ़रमाता है,
या फ़िर किसी दीवाने का अब खब्त देखिये।
केह दोगे तो अब मर मिटेगा कोई तुमपे,
न कहो तो जूनून-ऐ-दोजहान देखिये।
(अद्ल-ऐ-यास्दां = God’s justice; खब्त =obsession)
अलाहेदा हूँ मुंकिर-ऐ-वफ़ा से मैं कब से,
हमें देखे कोई के अब एह्मक-ऐ-जिन्दाँ देखिये।
तेरे तस्सवुर को काफिर पी ली है शराब ला त^दाद,
दीदार-ऐ-यार-ऐ-अकेले की कोई चाह देखिये।
(अलाहेदा = separate; मुन्किर-ऐ-वफ़ा = one who denies loyalty; एह्मक-ऐ-जिन्दाँ = jail for mad people; एह्मक= mad; जिन्दाँ= jail)
…………………………Atul
Thursday, April 24, 2008
हुस्न ओ इश्क......
इल्म है उसे हिबाह-ऐ-जेय्ब की उनपे याज्दानों से,
आगाही खुद्सर-ऐ-मख्बूत-ऐ-जुर-ऐ-बिस्मिल भी होता।
खुदाया तब भी परस्तिश ही करते, हम उनकी,
की मेरा जानि’ब जो कहीं मेरा कातिल भी कहीं होता
(हिबाह=gift; जेय्ब=beauty; याज्दान=God; आगाही=knowledge; खुदसर=stubborn; मख्बूत=mad; जुर= dare; बिस्मिल=lover; जानि'ब=lover;)
उनको लगता है कि काफिर शेर केहता है,
खूं-ऐ-जिगर बयां तरह और होता।
फ़िदा’ई की ये तो फितरत है,
जो तू नही, तो कोई और होता।
(फ़िदा’ई=lover)
गुरूर न कर तू अपने दिल फरेब होने का,
जो न होता आग तो बे नूर होता।
(दिल फरेब= beautiful; आग=love) ……………………….Atul
कीमत किसी की मुस्कान की....
बड़ी उम्मीद से मैं उम्मीदों का गला घोट आया हूँ
तेरी खुशी के लिए, तेरी दुनिया से लौट आया हूँ।
…………………………………..Atul
हक-ए-दर्द .....
मेरी यादों पे तो मेरा हक रहेने दो।
कुछ ग़म हैं संभाले मैने दिल के खज़ाने में,
कुछ आंसुओं को बाँध रखा है आंखों के तहखाने में,
दर्द ही बचा है कहने को अपना,
मुझे अपने ये दर्द तो सहने दो,
मेरी यादों पे तो मेरा हक रहेने दो।
…………………Atul
तसवीरें भी रूठती हैं ....
कुछ तो कशिश है की बिना तस्सवुर के उनके,
दिल दे दिया हमने, और उनको इख्त्यार भी नही।
हम तो दिल-ऐ-उम्मीद को चले हैं दफनाने,
की सुना है मुर्दों से कोई रूठा नही करते
……………Atul
ख्वाहिश ....
मज़ा तो जब हो की खयाल-ऐ-पा-ऐ-शम्मा आग-ऐ-आफताब हो
न गुजारी ये उम्र अकेले, ख्यालों में जो न उनके,
हिज्र हो खुदा से, क़यामत-ओ-पुर हो और आब-आब हों।
………………Atul
दुआ सलाम ....
नज़र मिल ही गई थी तो खूं-ऐ-दिल-ऐ-बेताब की जुस्तजू में क्या फै था,
सबब क्या हुआ तेरे दामन-ऐ-सुर्ख में एक और दाग छोड जाने का।
जहाँ-ऐ-तंज़-ओ-बद्गुम्मान भी देखे हैं खाना-ऐ-बद से होते आलम में,
एक तुम भी कुछ कुफ्र-ऐ-दिल-ओ-परेशान कह जाते तो कुछ न बिगड़ता ज़माने का।
………………………Atul
सजदा ........
सुना है, किसी ज़माने में ग़ालिब-ओ-मीर होते थे.
हम तो शेरों की इब्तदा भी कर न पाये मुक्कमल,
सुना है के वो शायरी की तकदीर होते थे.